मंजिल की ओर
यात्री तेरी मंजिल तुझसे दूर नहीं ,
करीब है आ पहुँचा तू ,
देख यात्री ,
उठाकर अपनी आँखे ,
तेरी मंजिल तुझसे दूर नहीं |
कर दे अनसुना उनको ,
जो ले जा रहे मंजिल से दूर ,
पर क्या पाया किसीने अकेला ,
सबसे मिल कर ही तो सब कुछ पाया |
आज हारा तो क्या हुआ ,
मंजिल तो नज़दीक है |
जगा अपने आत्मविश्वाश को ,
सुला दे हार को |
-नियति सिंह
I would love to know your views on my poem. Please comment.
Good one! 👍👍
ReplyDeleteNice poem.
ReplyDeleteKeep writing!
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